गुरुवार, 25 अगस्त 2011



आज मैंने एक ऐसी समानता को देखा जो दो चरों के बीच काफी गहरा तालुक दिखाई देता है जिसे आपने भी देखा होगा उसे ही जोड़ने की कोशिश करूँगा .............


बात यह है कि एक कीड़ा रात मे बल्ब के सामने बड़ी देर से उछाल रहा था परन्तु वह पतंगा नहीं है । देर बाद मैंने देखा कि वह जमीं पर उल्टा पड़ा है और बिना सीधा होने कि कोशिश के बगैर वह उल्टा ही घसीटते चला जा रहा है । लगभग एक घंटे से यह द्रश्य मै देख रहा था लेकिन उसमे कोई बदलाव नहीं आ रहा था .मुज़े लगा कि इसकी थोड़ी मदत कर दे तो यह फिर से उड़ सकेगा । इस हेतु से मैंने उसकी मदत तो कर दी लेकिन देर बाद देखा कि वह फिर उसी अवस्था मे है जिस अवस्था में वह पहले था ।


तात्पर्य यह है कि ....... भारत में जनतंत्र इसी दोओर से गुजर रहा है । पहले तो बड़े बड़े नेताओ के साथ मिलकर हमने स्वतंत्रता पाने के लिए जी जान लगा के हरसंभव (गरम-नरम) हरकते करते रहे जिससे परेशां हो कर अंग्रेजो ने हमें छोड़ दिया । लेकिन ये उस कीड़े कि तरह हरकते थी जो एक बल्ब के सामने कर रहे थे । जिस के कारण फिर हमारे जनतंत्र के पंख होते हुए भी पड़े पड़े पैर घसीट रहे है । याने कि अब वह आपने आप में अन्तर्निहित शक्तियों (जिस के कारन उन्होंने हकों को पहचाना था ) के आलावा अब वह आयातित विचारो पर ज्यादा बल दे रहे है । जिस के कारन जनतंत्र उल्टा ही घसीटे जा रहा है । आन्ना जब इसे सीधा कर आपने पंखो के बल उसे उड़ान भरने लायक बनाना चाहता है तो नेताओ ने भी यही (कीट)निति अपनाई गयी है जिन्हें कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है । देखते है की इस देश में यह 'कीट-निति' कब तक चलेगी...................

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